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      बिखरा रंग गुलाल का

बिखरा रंग गुलाल का, मन हो गया विभोर
कुंज गली में है मचा, मतवालों का शोर 

भर पिचकारी हाथ में, खेले श्याम किशोर
ढूँढ रही है राधिका, छिपे कहाँ चितचोर     

नगरी भोले नाथ की, काशी का यह रंग 
भाँग गुलाल अबीर ही, सोहे शिव के अंग 

शोभा देखो अवध की, खिले अबीर, के संग 
सिया लगाए राम को, लाल, हरा सब रंग

रंग लगाओ प्यार का, भूलो सभी मलाल
दूर करो शिकवे गिले, मल दो गाल गुलाल

भर मस्ती डोले सभी, मन में लिये उमंग
छिड़े राग जब फाग के,  बनते सभी मलंग

होली के हुड़दंग में, रंगों की बरसात
सारे मुखड़े एक से, यही निराली बात

- रचना वर्मा  
१ मार्च २०२३

   

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