अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

   
 

      
      चलती रहीं ठिठोलियाँ

खिली-खिली सी धूप ले आई फागुन भोर
सपने सारे सच हुए मनवा नाचे मोर

यादों में फिर सज रहा रस भीना त्योहार
रंग - गुलाल सहेलियाँ पिचकारी की धार

नयनों में लहरा उठे पानी पनघट छाँव
चूड़ी भरी कलाइयाँ कुमकुम वाले पाँव

सुख की साँकल खोलकर बेटी आई गाँव
मन आँगन में बस रही मधुर नेह की छाँव

चिड़िया सी गाए बुआ होली वाले गीत
तितली सी उड़ती फिरै रचे गुलाबी प्रीत

मिठबतियाँ दादी करें भर-भर गुझिया थाल
खोलें अनुभव पोटली कर दें मालामाल

अबकी होली में हुई खुलकर सबसे बात
चलती रही ठिठोलियाँ यों पूरे दिन-रात

होली के त्योहार में ऐसी उठे उमंग
सुख-दुख में सब साथ हों भूलें कटुक प्रसंग

रूसा-रूसी छोड़कर गोरी गाए गीत
भीगे-मीठे प्यार से हारी बाजी जीत

चिहुँक उठे मधुमास में सरसों सेमल फूल
अंकुर उपजे प्रीत के मौसम के अनुकूल

- पारुल तोमर
१ मार्च २०२३

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter