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चले आना हमारे गाँव अब की
बार फागुन में
रचेगे प्यार का मिल कर नया संसार फागुन में
दहकते है उधर टेसू इधर सरसों लहकती है
हुए सारे गली कूचे गुल ओ गुलजार फागुन में
नई कोपल, नये कलियाँ नयी है लय हवाओं की
लुटाता फिर रहा मौसम नये उपहार फागुन में
छिपी अमराई में कोयल गा रही राग बासंती
किया ऋतुराज ने धरती का फिर शृंगार फागुन में
उठी वो गंध महुए से शराबी हो गया मौसम
दिखाई दे रहा बहका सा हर किरदार फागुन में
बताशे, पान, ठंडाई, छिपी वो भंग गुझियो में
जमाता रंग, होली का गज़ब त्यौहार फागुन में
उड़े बादल गुलालों के पड़ी रंगों की बौछारें
नहाएँगे इन्हीं रंगों में धारोधार फागुन में
चले आना कहीं देखो गुज़र जाए न ये मौसम
सुना है हमने होते हैं महज दिन चार फागुन में
- मधु शुक्ला
१ मार्च २०२३ |