रंग की बौछार लेकर आ गई
होली अभी
प्रीति का उपहार लेकर आ गई होली अभी
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ओढ़ चूनर चाँदनी की झुरमुटों की ओट में
रूप का अभिसार लेकर आ गई होली अभी
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रंग की इस भीड़ में है रंग अपना कौन सा
तरल सा अधिकार लेकर आ गई होली अभी
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रूठ जाना फिर कभी यह मानने का वक्त है
अधर पर मनुहार लेकर आ गई होली अभी
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उतर कर आये धरा पर चाँद तारे भी यहाँ
प्रकृति का शृंगार लेकर आ गई होली अभी
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- मधु प्रधान
१ मार्च २०२३ |