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जिधर देखो उधर सजने लगा
बाजार होली में
गुलालो रंग अब बिकने को है तैयार होली में
तुम्हारे हुस्न का हो जाये गर दीदार होली में
तो हो जाये भला चंगा यहाँ बीमार होली में
निगाहें जब मिली तुझसे तो नजरें झुक गईं तेरी
हुये थे लाल तेरे शर्म से रुखसार होली में
मुझे तुम देखते ही क्यों नजर को फेर लेते हो
तुम्हें दिखता नहीं है क्यों हमारा प्यार होली में
बड़ी मुश्किल में हूँ खेलूँ यहाँ पर किससे होली मैं
अभी परदेश से आये नही भरतार होली में
हर इक चैनल पे गाये जा रहे हैं फाग, लांगुरिया
रंगें हैं गीत ग़ज़लों से सभी अखबार होली में
खिलाऊँ मैं तुम्हें गुझिया पपड़िया प्यार से लड्डू
कभी तुम भी हमारे घर पे आओ यार होली में
- दिनेश विकल
१ मार्च २०२३ |