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करूँ क्या होली है

सुनो रे वन के पंछी मोर
सखा! न आज मचाना शोर
चुराने आई तेरे रंग
करूँ क्या होली है

रंगरेज की हुई मनाही
सब ढूँढे हाट-बाज़ार
इन्द्रधनु का दूर बसेरा
करे नखरे लाख हजार
छिड़ी है तितली से भी जंग
करूँ क्या होली है

अम्बर बदरा रंग उड़ेले
बूँदें बरसें सावन की
होरी चैती अधर सजें फिर
सुध-बुध खो दूँ तन-मन की
ज़रा सी चख ली मैंने भंग
करूँ क्या, होली है

चुनरी टाँकूँ मोर पाँखुरी
माथे बिंदिया चन्दन की
चन्द्रकला का हार पिरो लूँ
रुनझुन छेडूँ कंगन की
बजाऊँ जी भर ढोल मृदंग 
सुनो जी, होली है

- शशि पाधा
१ मार्च २०२२
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