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धवल चंद्र औ' फैली चाँदी

धवल चंद्र औ फैली चाँदी
निशि निखरी हिमकण सी लगती

फुनगी पर नव पलल्व नाचे
कुसुमकार हर हृदय विराजे
डाली-डाली नभचर गाते
ऋतु माया की अब तो ठगती

हँसता भौंरा किसलय गुनकर
अंबर खड्डी बादल बुनकर
भिन्न-भिन्न है फिर भी सुंदर
फूल-कली से तितली कहती

लगते वन के फूल अनन्या
रूप रंग अनुपम लावण्या
खिलना झरना पल-पल बहना
प्रकृति ध्वनि भी लय में बहती

ले अँगडाई पवन झकोरा
रंग रहा मन कोरा-कोरा
पोखर-पोखर दर्पण देखूँ
मन में प्रेमिल लतिका उगती

- दिव्या राजेश्वरी
१ मार्च २०२२
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