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डूब गये सौ रंग में

प्राची लिखती क्षितिज पर पत्र पिया के नाम
धीरे-धीरे द्वार तक लेकर जाता घाम

लुक-छुप मिलते वेणु-वट देते मीठी छाँव
प्रीति-नगर को चल पड़े चिह्न ढूँढते पाँव

पगडंडी करने लगी अढ़री से परिहास
प्रेम-पातियाँ बाँचती मिली डगर की घास

अँगड़ाईं अमराइयाँ भ्रमित हुआ ऋतुराज
कण-कण उच्छृंखल हुआ शरण माँगती लाज

साँस-साँस सरगम हुई अंग-अंग सुरधाम
अलका अलकें खोल ज्यों नृत्य कर रही शाम

तन फूला टेसू हुआ मन बौराया आम
फुनगी पर यौवन चढ़ा रटे तुम्हारा नाम

सनक गया सनकी पवन बाहुपाश ले धूल
अमरबेल के संग में पागल हुआ बबूल

धरती जब करने लगी वासंती शृंगार
तब सूरज ने रख लिये अधरों पर अंगार

अंकुर फूटे प्रेम के होली से ही यार
मन से हो तो प्रीति है तन से हो तो प्यार

डूब गये सौ रंग में कविवर उमा प्रसाद
गीत, गजल, कविता हुई खुशियों की फरियाद

- उमा प्रसाद लोधी
१ मार्च २०२२
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