अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

इन्द्रधनुष मन हो गया

याद किया जब नदी ने कल झरने का जश्न
फागुन की अठखेलियाँ छोड़ गयीं कुछ प्रश्न

अब तो केवल रतजगा एक उसी के ख़्वाब
फागुन आया दे गया गुझिया और गुलाब

काया चन्दन हो गयी मन टेसू का फूल
फागुन आया रंग गया कालिन्दी के कूल

बातें करते रात-दिन मिलते दृष्टि सँभाल
फागुन करता पैरवी जब से पड़ा गुलाल

प्रणय-निवेदन अवनि का अम्बर है निरुपाय
फागुन अबकी गढ़ रहा नये-नये अध्याय

कहकर हाँ शरमा गयी फागुन करे कमाल
काट चिकोटी गाल में मलता रहा गुलाल

मिले और फिर हो गये कस्तूरी का इत्र
फागुन की रंगीनियाँ दिखा रहीं नवचित्र

इन्द्रधनुष मन हो गया चले काम के बाण
फागुन जादू कर रहा मोम हुआ पाषाण

- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
१ मार्च २०२२
.

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter