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बसंत का रूप

भेदभाव को मेटने आता यह त्यौहार
मन पिचकारी से बहा समरसता की धार

हुरियारों की टोलियाँ आयी घर के द्वार
गाकर फागुन गीत में देते खुशी अपार

भाईचारे का लगा मधुमय प्रेम अबीर
नफरत का विष मेट कर मनवा हुआ कबीर

प्रभु ने रंगों से लिखा राधा जी को पत्र
फागुन कान्हामय हुआ यत्र तत्र सर्वत्र

होली चाहे एकता करो प्रेम व्यवहार
मिलजुलकर सारे रहे तभी जुड़े संसार

भेजूँ प्रेम गुलाल को रँगने दिल के द्वार
सभी हृदय से एक हो 'मंजू' की दरकार

फाग महीना प्रेम का लाया रंग अनंत
डालन चटका फाग है पिक पुकारती कंत

- डॉ मंजु गुप्ता
१ मार्च २०२२
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