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रंग कलश टेसू भरे

रंग कलश टेसू भरे फैलाते निज बाँह
आमंत्रित सब को करें देते खुशी अथाह

शीत विदाई हुई अबधरती जगी सुहास
मुस्काई सजने उठी कोइ न रहे उदास

श्वेत चुनरिया बर्फ की रखी उतारी ताक
पीली सरसों फूल की ओढ़ सज गई चाक

भौंरों की टोली मिले करती स्वर गुंजार
बागों में टहलें फिरें फाग राग मनुहार

मधु सौरभ मकरंद का जगा हृदय में जोश
मनवा झूमे डोलता हो जाता मदहोश

ऐसे उलसित समय में प्रेम रंग रस घोल
तापस मन भी डूबता भूले ईश्वर बोल

फैले जादू प्रकृति का सतरंगी सौगात
मनुज अछूता रहे नहिं भीगे रंग-बरसात

रंग अबीर गुलाल से सजे सजाए भाल
खेलें होली प्यार से भूलें सभी मलाल

ठंडाई शरबत पिएं गुझिया और पकवान
इक दूजे सब को रंगें मुश्किल हो पहचान

कोरोना ने रोक दी गले मिलन की रस्म
सुखी रहें सब खुश रहें संभल मनाएँ जश्न

- ज्योतिर्मयी पंत
१ मार्च २०२२
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