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बिन होली खेले ही

बिन होली खेले ही साजन भीग गए
ऐसे भीगे तन मन दामन भीग गए

रिमझिम रंगों की बरसातें ऐसी थीं
धरती भीगी घर के आँगन भीग गए

रंग अबीर उड़ाकर तन पर वो मेरे
गीली मैं वो मेरे कारन भीग गए

आलिंगन में बाँध पिया ने रंग डाला
ऐसा रंगा कि सूखे सावन भीग गए

“आना घर फागुन में” सँदेसा आया
ये सुनते ही मन के गुलशन भीग गए

याद में तेरी रोये दरवाज़े ‘आभा’
दीवारो-दर बे रंग-रोगन भीग गए

- आभा सक्सेना ‘दूनवी’
१ मार्च २०२२
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