जंगल जंगल फूले टेसू आँगन
बौरे आम
पुरवा टाँक गई परदों पर
नाम तुम्हारा नाम
आने की आहट
जाने के कुछ उदास पदबंध
मौसम से इतना ही नाता
नहीं रूप रस गंध
मेघ मिले उतने ही सूखे जितना तीखा घाम
पुरवा टाँक गई परदों पर
नाम तुम्हारा नाम
पूर्ण कथानक है पतझर का
केवल जल्द वसंत
फागुन तो बस शीर्षक भर है
जेठ आदि से अंत
इक सुगंध है स्याह उम्र
के डूबे पृष्ठ तमाम
पुरवा टाँक गई परदों पर
नाम तुम्हारा नाम
- विनोद निगम
१ मार्च २०२०