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मुनिया की होली

बिखर गए हैं रंग–रंगोली
राख हुई मुनिया की खोली
किस मन से अब
खेलें होली

कितने सपने राख हुए हैं
चूड़ी कंगना ख़ाक हुए हैं
तार–तार शादी का जोड़ा
चुनरी में सूराख हुए हैं
कल तक रिश्ता भाईचारा
किसने आकर
नफ़रत घोली

रक्षक भक्षक बनते देखे
हिंसा तांडव करते देखे
दुबका सहमा बचपन बैठा
सपने टूटे जलते देखे
अँखियों की वीरानी पूछे
कहाँ सी आई
दानव टोली

ऐसा कोई मंतर गाएँ
विश्वासों की अलख जगाएँ
प्रेम-नेह की पुड़िया बाँटें
युगों युगों की रस्म निभाएँ
नगर डगर में करें मुनादी
आशाओं से
भर दें झोली
मुनिया भी खेलेगी होली

- शशि पाधा
१ मार्च २०२०

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