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रंग हुए बेरंग

रंग हुए बेरंग,
दिल की गलियाँ तंग
कहो, कैसे हो होली!

फागुन तो आया लेकिन
झोंके दे गया अनय के
वैमनस्य की ज्वाला में
झुलसे सब तंतु हृदय के

आहत चित्त-कुरंग
भूले मधुर प्रसंग
कहो, कैसे हो होली!

मेल-जोल सब ख़त्म हुआ
जल गयीं पुरानी रसमें
रह-रहकर याद आती हैं
कुछ झूठी-सच्ची क़समें

मोह हो गया भंग
मन की कटी पतंग,
कहो, कैसे हो होली!

जब से हिंसा जंगल तज
आ पहुँची है रजधानी
सत्ता को बंदिनी बना
करती जाती मनमानी

हिय उठती न तरंग
शिथिल अंग-प्रत्यंग
कहो, कैसे हो होली!

- राजेन्द्र वर्मा
१ मार्च २०२०

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