ऐसा फेंका रंग
कि केसर-केसर गगन हुआ
तनमन भीगा भीगा फागुन
मन सतरंग हुआबढ़े समंदर कोलाहल के
नाच उठे मन-मोर
तार स्वरों में फाग गूँजता
जिसका ओर न छोर
ऐसी बाजी चंग
कि सरगम-सरगम मगन हुआ
तनमन भीगा, भीगा फागुन
मन सतरंग हुआ
मित्र-मंडली, आवाजाही
किस्सागोई की
धीरे धीरे सीझ रही है
गमक रसोई की
ऐसे मिले स्वजन
कि आनंद आनंद भुवन हुआ
तनमन भीगा, भीगा फागुन
मन सतरंग हुआ
इत्र फुलेल अबीर, अबरक से
रंग रंगीले हैं
औ' गुलाबपाशों को थामे
सजे सजीले हैं
ऐसी उड़ी सुगंध
कि चंदन-चंदन पवन हुआ
तनमन भीगा, भीगा फागुन
मन सतरंग हुआ
सालों साल चले यह मौसम
खुशियाँ साथ रहे
सारे पकवानों के संग में
गुझियाँ साथ रहें
सुख की उड़े पतंग
कि ज्यों उपवन में मस्त सुआ
तनमन भीगे, भीगे फागुन
सबको यही दुआ
-
पूर्णिमा वर्मन
१ मार्च २०२०