अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

पहन रंगीन लिबास

आयी होली तान छेड़ती
पहन रंगीन लिबास

सब मुखड़े हैं रंग बिरंगे
लगते हैं अनजान
हो कैसे इन सबमें मेरी
सजनी की पहचान
मस्ती छायी है गीतों की
थिरके रसिया रास
पहन रंगीन लिबास

जिन शक्लों पर जमी हुई है
घृणा, कपट की जंग
रंग फुहार से दमक रहे हैं
उनके भी सब अंग
रंग धार में अहं धुल गया
खिल उट्ठा उल्लास
पहन रंगीन लिबास

एक दिवस का प्रेम मिलन यह
दिवस एक का फाग
बदरंगी से शेष सभी दिन
केवल भागम भाग
बाजे ढोलक झाँझ मजीरे
बढ़े मिलन की प्यास
पहन रंगीन लिबास

होली ने पाया बड़ा
अल्हड़ मस्त स्वभाव
गाल-गाल पर कर दिया
रंगों का छिटकाव
खिले बासंती रंग अनेक
रहे सुवासित श्वास
पहन रंगीन लिबास

- ओम प्रकाश नौटियाल
१ मार्च २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter