अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

गा रही है फाग पुरवा

केसरी बाना पहनकर
रंग हरने आ गए
कुत्सित विचारों
का प्रदूषण।

गा रही है फाग पुरवा
राग धुँधलाए तिमिर के
टेसुओं के पाँव पूजे
नागफनियों ने सिहर के

दुश्मनी है दंग लखकर
दोस्ती के मन, नवेले
प्रीत-पुष्पों में
परागण।

मुड़ चला है रथ समय का
सौख्य के लेकर उजाले
चित हुए सब मात खाकर
लोभ-लिपटे मेघ काले

स्वर्ण-किरणें बाँट दिनकर-
ने दिया फहरा विजय-
ध्वज, कालिमा को
काट क्षण-क्षण।

साल भर आतंक होते
पुष्ट जो जग को सताकर
होलिका उनको जलाती
गोद में अपनी बिठाकर

गर्व से फिर भंग पीकर
पर्व पुण्यों का मनाता
जोश से हर बार
जन-गण।

- कल्पना रामानी
१ मार्च २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter