अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

रंग फागुन मत उड़ाना

रंग फागुन मत उड़ाना
वीर! सरहद पर डटा है

लौट आते हो सदा तुम
"वीर" से पहले घरों में
कौन पत्थर बाँध देता
है भला उसके परों में

द्वार फागुन मत बजाना
हृदय चिंता से अटा है

ठंड का मौसम कभी
जाता नहीं, वह कह रहा था
फोन के उस छोर पर वह
कल्ल ही तो दह रहा था

पवन फागुन मत चलाना
नेह का आँचल फटा है

डाकिये की घण्टियों पर
जिंदगी माँ की टिकी है
देखने को आँख भर, कुल
साँस आजी की रुकी है

चंग फागुन मत बजाना
चैन प्राणों का लुटा है

- कल्पना मनोरमा
१ मार्च २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter