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फाग की बयार में

प्रीत रंग घुल गया
फाग की बयार में
खिल उठीं हैं कोंपलें
फिर किसी के प्यार में

चाहते हैं खेलना
रंग मिल के सब जने
मन से कोई खेलता
और कोई अनमने
हाथ लाल बैंगनी
गुलाल में सने-सने
ठंड है अड़ी हुई
गर्मियों की राह में

मस्तियों के रंग में
गाल सब पुते हुए
छूट ना सके कोई
इस कदर जुटे हुए
जाति धर्म वेश वाणी
भेद सब मिटे हुए
कौन राम है रहीम
कौन रंग धार में

- दिगंबर नासवा
१ मार्च २०२०

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