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घर आ जा साँवरिया |
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सीमा-पार समर में साजन
मोह तजे गोरी का
बासंती चोला रँगवाकर
रूप धरे जोगी का
बादल बरस रहे होली के
भींजी सकल नगरिया
घर आजा साँवरिया, परदेशी साँवरिया
फाग लगे पतझर-सा तुम बिन
रंग लगें सब फीके
नस-नस में विषधर दौड़े हैं
आँख-दाहिनी फड़के
जी जाऊँ अधरों पर रख दे
अधरों की बाँसुरिया।
घर आजा साँवरिया, परदेशी साँवरिया
अमलताश फूले सपनों में
जपाकुसुम गदराये
सरसों पकी, नयन शरमाये
विरहा ताप बढ़ाये
छलकी आँखों के पनघट पर
अँसुवन भरी गगरिया।
घर आजा साँवरिया, परदेशी साँवरिया
भीतर-बाहर बौराया मन
ले अँगिया अँगड़ाई
रोम-रोम मंजरियाँ चटकीं
बहक रही तरुणाई
देह दहकती है पलाश-सी
महक रही केसरिया
घर आजा साँवरिया, परदेशी साँवरिया
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भावना तिवारी
१ मार्च २०२० |
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