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रंगों का गाँव

कभी पढ़ा था कि रोशनी में
सभी रंगों के हैं गाँव यारों
या फिर कहो यों कि सारे रंगों
का हो मिलन तो ही रोशनी है
तो फिर अँधेरा हुआ ये कैसे
हुआ अचानक उजालों को क्या

जहाँ हरा, लाल हो या कि नीला
सभी ने मिल कर रचा सवेरा
सभी ने सारे रंगों में रंग कर
है काली रातों को मिल के घेरा
वहाँ अँधेरों ने सारे रंगो के कान
धोखे से भर दिए हैं

सभी के मन को छल और कपट से
शक़ोशुबह की दी है बीमारी
कहा सभी से अलग अलग यह
कि तुमसे ही तो चमक है सारी
कि तुम नहीं तो क्या रोशनी है
जो तुम नहीं तो क्या रोशनी है

ऐ काश! कोई कहीं से आता
ऐ काश! कोई इन्हें बताता
अकेले में तुम बस एक रंग हो
किसी किरण का बस एक अंग हो
अलग हुए तो सवेरा कैसा
वो उजला उजला बसेरा कैसा

अलग भी रह कर रहो न कुछ यों
कि सारे मिल इक धनक बनाओ
हों काले बादल भी पानी-पानी
यों बारिशों में रहो-नहाओ

मिलो सभी हाथ में हाथ तो लो
चलो अब इक दूसरे से बोलो
कि तुम नहीं तो क्या रोशनी है
जो तुम नहीं तो क्या रोशनी है
हाँ हम नहीं तो क्या रोशनी है

- सीमा अग्रवाल
१ मार्च २०२०

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