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फागुन मेरे पास : दोहे

नदी सरीखा वेग है, झरनों-सा उल्लास।
तुम जो मेरे पास हो, फागुन मेरे पास।।

सातों सुर तब बोलते, गाते मेघ मल्हार।
ले गुलाल जब हाथ में, मीत करे मनुहार।।

सतरंगी साजन हुए, नैना हुए गुलाब।
आया फागुन भर गया, मीठे-मीठे ख़्वाब।।

मिले नयन से नयन जब, अन्तर हुआ गुलाल।
एकरंग सपने हुए, फागुन करे कमाल।।

बजे मँजीरे प्रीत के, बजने लगे मृदंग।
बोली मैना मीत से, रँग लो अपने रंग।।

खेतों में सरसों खिली, झूम रहे हैं फूल।
बिन बालम फागुन चुभे, ज्यों बबूल के शूल।।

ख़ुशियों के अम्बार हैं, रंगों की बौछार।
होली मैत्री-मोद का, प्यारा-सा त्यौहार।।

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'

१ मार्च २०२०

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