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किस मनिहारिन ने रंगे : दोहे

किस मनिहारिन ने रंगे, इस सूरज के पाँव।
इसे देखने जग रहा, धीरे-धीरे गाँव।।

कहन, भाव, चितवन, छुवन, ढोलक, ढोल, मृदंग।
धीरे-धीरे रँग गये, सब फागुन के रंग।।

हरी-पीत धरती हुई, टेसू दहके लाल।
नभ पर रंग पतंग का, धूसर हुआ गुलाल।।

फूल, धूल औ भूल का, आया ज्यों त्योहार।
साँकल खटकाने लगा, द्वार-द्वार शृंगार।।

तन हल्दी से ज्यों रँगा, गयी कामना जाग।
फिर क्या था अँगड़ाइयाँ, लगीं खेलने फाग।।

लोक धुनों की चाशनी, द्विअर्थी संवाद।
ताजा-ताजा कर गये, परदेसी की याद।।

टेसू जैसे हो गये, उसके दोनों गाल।
मनमोहन ने पास आ, जब भी पूछा हाल।।

पायल की झनकार तब, और हो गई तेज।
पिचकारी से रँग गया, जब मन को रँगरेज।।

दो पंखुड़ियों ने किया, अधरों से संवाद।
फागुन-फागुन हो गया, मन पैठा अवसाद।।

अंग-अंग उड़ने लगा, जैसे उड़े गुलाल।
बाहों में भर प्यार ने, जब भी चूमा गाल।।

- राहुल शिवाय
१ मार्च २०२०

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