|
इस होली ने
दर्द जगाया
खोया है विश्वास
न धमाल, न फाग गीत
न ठुमरी, चैता, ढोल, मजीरा
तोड़ रहा दम लोकगीत, सुन-
फूहड़ फिल्मी गीत जखीरा
उत्सवधर्मी इस समाज के
बचा नहीं कुछ पास
रंगों में घुल गये रसायन
रहे प्रकृति की लाज उतार
सनक चढ़ी जबसे पश्चिम की
फैशन वाले खुले बजार
परंपरा जो बची-खुची थी
उसका होता नाश
गाली और नशेबाजी में
गायब होता जाता प्यार
गला काटकर गले लगायें
धूर्त भेड़िये और सियार
उत्सव में हुड़दंग खून का
कहाँ गया उल्लास
- योगेन्द्र प्रताप मौर्य
१ मार्च २०१८ |