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रंग बिरंगी
फुलबगिया में
लहराकर अब आ
ऐसा वैसा औरों की
दीवारों पर लिख जा
कालिख मुँह पर पोत किसी के
रंज मलाल न कर
नागफनी के फूलों को है
नहीं किसी का डर
आवारा उन्मुक्त उमंगों का
अब जश्न मना
सीधी साधी गाय सरीखी
अब न रही लड़की
मुक्त खेलती फाग
बहुत दिन बंद रही खिडकी
ढोल नगाड़े छोड़ मोबायल पर
खुद नाच, नचा
गौरैया पिंजरे में सहमी
नहीं सेंकती धूप
उसको है अनुकूल अभी तक
अपने घर का कूप
हर्ष-मिलन का पर्व तुझे है
फागुन मस्ती का
- विश्वम्भर शुक्ल
१ मार्च २०१८ |