अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

फागुन बोल रहा है

मिसरी घोल रहा है
फागुन बोल रहा है

हुआ सुवासित कण-कण जग में
अन्तर पुष्प पलाश हुआ है
धानी चूनर ओढ़े धरती,
सतरंगी आकाश हुआ है
सब-कुछ डोल रहा है

ट्वीटर पर संदेश पड़े हैं
वादे गढ़ते पक्के-कच्चे
पिचकारी बिन गुझिया-सुझिया
मचल रहे भिक्खू के बच्चे
दर्द टटोल रहा है

ऊँच-नीच का अन्तर मेटे
होली है त्यौहार अनूठा
आओ मिलकर जश्न मनायें
रहे न कोई भूखा-रूठा
मैत्री तोल रहा है

- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
१ मार्च २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter