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मिसरी घोल
रहा है
फागुन बोल रहा है
हुआ सुवासित कण-कण जग में
अन्तर पुष्प पलाश हुआ है
धानी चूनर ओढ़े धरती,
सतरंगी आकाश हुआ है
सब-कुछ डोल रहा है
ट्वीटर पर संदेश पड़े हैं
वादे गढ़ते पक्के-कच्चे
पिचकारी बिन गुझिया-सुझिया
मचल रहे भिक्खू के बच्चे
दर्द टटोल रहा है
ऊँच-नीच का अन्तर मेटे
होली है त्यौहार अनूठा
आओ मिलकर जश्न मनायें
रहे न कोई भूखा-रूठा
मैत्री तोल रहा है
- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
१ मार्च २०१८ |