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धरा ने रूप
के नूतन छुए
आयाम फागुन में
सुहागी रंग उड़ेला है
पलासों ने सजाकर के
कहे सरसों पवन के कान में
कुछ फुसफुसा कर के
चमकती बालियाँ, हँसता
सुनहरा घाम फागुन में
विहँस कर साँझ ने रवि पर
सिंदूरी रंग डाला है
उनींदी धूप ने थककर
ढका श्यामल दुशाला है
धुँधलके में खिली लगती
सुहानी शाम फागुन में
नहीं सूरज, प्रखर तेवर
दिखाता जेठ के जैसे
ठिठुरती पूस के जैसी,
न, काटें रात को कैसे ?
सजे हैं मौसमी खुशरंग
आठों याम फागुन में
- सीमाहरि शर्मा
१ मार्च २०१८ |