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फागुन का मौसम आया है

अमलतास, कचनारों मिल कर
टेसू की रंगत से खिल कर
फागुन का मौसम आया है

सोशल मिडिया की चौखट पर
बैठ इधर मैं नाते जोड़ूँ
रखते हैं दिन व्यस्त भुलावे
यादों के उत्पात रात भर
बार-बार अनुशासन तोड़ें
निपटूँ कैसे ये बहकावे ?
’जो होना है हो ही जाये’
उकसाता मौसम आया है
फागुन का मौसम आया है !

मैसिज ही में रंग-मिठाई
’शुभ-शुभ’ तक मैसिज में आयें
मिलना-जुलना तनिक न भाता
भीड़ बहुत, पर, अपने कम हैं
उथला है विश्वास, तभी तो
आभासी संसार सुहाता
हुए पर्व भी फेसबुकी अब
सिर धुनता मौसम आया है
फागुन का मौसम आया है

मोनीटर बरसाये फगुआ
मोबाइल के रंग-गुलालों-
भूली-बिसरी प्रीत जगी फिर
देह तोड़ती दिनचर्या को
रंग-बिरंगी करवट देती
भली-भली-सी टीस लगी फिर
नेह-छोह में फिर-फिर जीने
खुलने का मौसम आया है
फागुन का मौसम आया है

- सौरभ पांडेय
१ मार्च २०१८

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