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रंगों का नव पर्व बसंती

रंगों का नव पर्व बसंती
सतरंगा आया

आशा पंछी को खोजे से ठौर नहीं मिलती.
महानगर में शिव-पूजन को बौर नहीं मिलती.
चकित अपर्णा देख, अपर्णा
है भू की काया

कागा-कोयल का अंतर अब जाने कैसे कौन?
चित्र किताबों में देखें, बोली अनुमानें मौन
भजन भुला कर डिस्को-गाना
मंदिर में गाया

है अबीर से उन्हें एलर्जी, रंगों से है बैर
गले न लगते, हग करते हैं मना जान की खैर
जड़ विहीन जड़-जीवन लखकर
'सलिल' मुस्कुराया

- संजीव सलिल
१ मार्च २०१८

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