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मैं वसुंधरा

मैं वसुन्धरा
खिले पलाशों से मिल मिल कर
खुद बासंती होती जाऊँ

सरस फाग के गीत सुहाने
कोयल पपिहा आए सुनाने
पारिजात भर देता दामन
मस्त हवा ने गाए तराने
पीत रंग सरसों से लेकर
मीठे सपनो को ले आऊँ
गीत बनी पल पल इतराऊँ

भोर सांध्य नभ है नारंगी
कलरव में बजती सारंगी
भाँति भाँति की खुश्बू लेकर
मुकुलित पुष्प हुए बहुरंगी
तितली के सुन्दर पंखों से
रंग रंग मधुमास उड़ाऊँ

-ऋता शेखर ‘मधु’
१ मार्च २०१८

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