अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

फागुन

रंगों के इंद्र धनुष बिखरे
मौसम ने जब खोली पलकें
गीतों के फिर आँचल सँवरे
फागुन ने फिर
गूँथी अलकें

बिंदिया से पायल तक गोरी
बासंती रंगो की टोली
भीगा अम्बर भीगी धरती
भीगी चूनर भीगी चोली
मधु कलश छलकते छ्न्दों के
फूले पलाश जैसे
वन के

राधा के अरुण कपोलों से
मधुशाला का गठबंधन है
मन की छोटी सी बस्ती का
कोना कोना वृन्दावन है
पनघट है यमुना का जल है
किस्से हैं रस के
केसर के

- रंजना गुप्ता
१ मार्च २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter