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तारीखों ने ये बतलाया
होली आई है
पर दिल ने अब तक होली की
आहट कहाँ सुनी
अक्षत दुख से पीले पीले
गुड़ क्यों फ़ीका फ़ीका
सरस हुआ बिन पानी कैसे
ये होली का टीका
काँप रहें हैं हाथ बहन के
बोझ उठाये कैसे
मुस्कानों की कुमकुम ने ये
थाली नहीं चुनी
लाल रंग क्या अब भी दिखता
उतना ही चटकीला
हरा, हरा करता है क्या मन
पीला है क्या पीला
दृष्टि दोष कुछ मुझे हुआ क्या
रंग नहीं पहचानूँ
क्यों पलकों ने सिर्फ धवल सी
चादर एक बुनी
चंग उदास टँगी खूंटी पर
अब कैसे बहलाऊँ
यादों का सीलापन हरने
धूप कहाँ से लाऊँ
गीत अबोले भाव अछूते
थाप मौन ढफली की
अंतस की आवाज़ अजानी
शब्दों ने न गुनी
दुनियादारी करते करते
दुनिया छूट रही क्यों
जुड़ते जुड़ते बाहर सबसे
भीतर टूट रही क्यों
शुभ के शगुन तुम्हारे बिन हों
कैसे पूरे भाई
रस्में खुशियों वाली आतीं
टीस लिए दुगुनी
- निशा कोठारी
१ मार्च २०१८ |