लाल केसरिया
गुलाबी और धानी दिन
उतर आये हैं धरा पर आसमानी दिन
फिर दिशाओं ने क्षितिज की खिड़कियाँ खोली
आ गया फागुन लिये रंगों भरी होली
चल रही तकरार मीठी आम महुआ में
धूप से करती ठिठोली नीम मुँहबोली
साथ मदमाती हुई चंचल हवाओं के
फिर रहे हैं महमहाते
ज़ाफरानी दिन
आ गये हैं लौट कर फिर दिन गुलाबों के
पृष्ठ फिर खुलने लगे मन की किताबों के
बैठ सिरहाने कई रूठी हुई सुधियाँ
मागती हैं हल सभी पिछले हिसाबों के
पंख फिर लेकर पलों के उड़ चले नभ को
छोड़ मन की रेत पर अपनी
निशानी दिन
राग बासंती लगी फिर कोकिला गाने
रंग सपनों के लगे कुछ और गहराने
इन पलाशी मोहपाशों में भटकता मन
छन्द फिर शाकुन्तलम् के लगा दुहराने
बैठ तट के झुरमुटों में मोरपाँखों से
लिख रहे फिर प्रेम के किस्से-
कहानी दिन
- मधु शुक्ला
१ मार्च २०१८ |