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आ गई होली
रँगीली
मदिर मौसम फाग गाए
काश वो भी लौट आए
हो गये रंगीन बादल
टाँक कर किरनें सुनहली
प्रीति की मृदु गन्ध भीनी
चुनरिया वसुधा ने पहनी
झूमता महुआ
रसीली कली
चटके खिलखिलाए
कुछ चटक से रंग भर कर
द्वार की शुभ अल्पना में
फिर नये सपने सजाये
बावली सी कल्पना नें
खिल गये कचनार
सरसों हँसी
टेसू मुस्कराए
खिल उठा है द्वार भी, फिर
रच दिया सतिया सिंदूरी
किन्तु सारी रीतियाँ, लगती
किसी के बिन अधूरी
महकती सुधियों
के वे पल, मधुर
स्वर में गुनगुनाए
- मधु प्रधान
१ मार्च २०१८ |