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फागुन आया है

क्यों कहते सब चलो नाच लें !
फागुन आया है ?

जमी दिख रही चहरों पर
सर्दी की खुरचन उसी भाव में
रात-दिवस की मनमानी
नित डाल रही है
नमक घाव में
मन का चैन छीन पछुआ ने
होश उड़ाया है !

टाँक रही पैबन्द जिंदगी
चादर में न जाने कब से
मूर्त रूप में देख न पाया
अरमानों को
मौसम कब से
शब्द हीन भाषा ने हमको
मौन सिखाया है

भीगी बिल्ली -सी बन जातीं
मनोकामनाएं जब सबकी
पान,सुपाड़ी बिना हरद के
रह जाती
बिनब्याही छुटकी
महँगाई डायन ने सबका
रंग उड़ाया है

- कल्पना मनोरमा
१ मार्च २०१८

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