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रंग लगाकर पालथी

रंग लगाकर पालथी बैठ गये हर पोर
द्वारे ड्योढ़ी गा उठे, करें
खिड़कियाँ शोर

बाट जोहती गलियों के चेहरे हुए गुलाल
ढोल बजाता जब आया टेसू हीरा लाल
उचक-उचककर वेणियाँ हाथ हिला मुसकाय
शर्माता वो नील रंग छुप-छुप कर बतियाय

धडकन ने ताली बजा बाँधी जीवन डोर
सुगना की चूनर उड़ा, मचली
पवन विभोर

गली-गली के हाथ में पिचकारी भरपूर
भाँग चढाकर आँगना हुआ नशे में चूर
दीवारों के तन सजे सतरंगी परिधान
सपनों की चौपाल पर छाई रंगी शान

नर्तन फिर करने लगी श्वास-श्वास हर छोर
भीगी बदली हो गयी, नयनों
की हर कोर

- गीता पंडित
१ मार्च २०१८

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