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तुम बिन रंग सब फींके

सीमा पार समर में साजन मोह तजे गोरी का
बासंती चोला रँगवा के रूप धरे जोगी का
बादल बरस रहे होली के
भींगी सकल नगरिया
परदेशी साँवरिया, घर आजा साँवरिया

फ़ाग लगे पतझर-सा तुम बिन रंग सब फ़ीके
नस-नस में विषधर दौड़े हैं,पलक दाहिनी फड़के
जी जाऊँ, अधरों पर रख दे
अधरों की बाँसुरिया
परदेशी साँवरिया, घर आजा साँवरिया

अमलताश फूले सपनों में, जवाकुसुम गदराए
सरसों पकी हथेली ऊपर, विरहा आग लगाए
देह दहकती है पलाश-सी
महक उठी केसरिया
परदेशी साँवरिया, घर आजा साँवरिया

भीतर-बाहर बौराया मन, ले अँगिया अँगड़ाई
रोम-रोम मंजरियाँ चटकीं, बहक रही तरुणाई
बार-बार छलके आँखों के
पनघट पर गागरिया
परदेशी साँवरिया, घर आजा साँवरिया

- भावना तिवारी
१ मार्च २०१८

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