गीत प्रीत
के हमें सुनाने
आया है फागुन
धर्म न है कोई रंगों का
सबको लगें भले
भेदभाव सब मिटा हृदय से
लग जा आज गले.
प्रेम रंग में तन मन रँग ले
नहीं किसी की सुन
सरसों के सँग गेहूँ खेले
बथुआ मस्त उगे
गौरैया के साथ खेत में
दाने काग चुगे
दहन घृणा का कर होली में
दया प्रेम को चुन
बरफी गुझिया हलुआ पूरी
है मीठी रबड़.
सजे हुए हैं एक थाल में
सेव संग पपड़ी
हिलमिल कर सब सिखा रहे हैं
हमें प्यार की धुन
- बसंत कुमार शर्मा
१ मार्च २०१८ |