|
ढोल-नगाड़े
बज रहे, उड़ता रंग-गुलाल
होली पर हर ओर है, खुशियों का संजाल
धरती से आकाश तक, छाया है उल्लास
त्यौहारों पर दिन खिले, जैसे हो मधुमास
थिरक रही हैं गोरियाँ, लाज-शर्म को छोड़
इधर रंग छाया हुआ, उधर भंग की होड़
होली खेलें गोपियाँ, कन्हैया के संग
खेल-खेल में रच रहा, अनुपम एक प्रसंग
खाली जेबें घूमती, बे-रौनक बाजार
महँगाई की मार से, सिमट गये त्यौहार
अबकी होली में उड़े, ऐसे रंग-गुलाल
निर्मल हों मन, दूर हों, शिकवे और मलाल
जीवन में खिलते रहें, खुशियों के सब रंग
उम्मीदों की डोर से, नभ में उड़े पतंग
कोई रंगों को चुने, कोई छाने भंग
होली में हर एक का, अपना-अपना रंग
- सुबोध श्रीवास्तव
१ मार्च २०१८ |