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लाल गुलाबी
ले हरा खूब लगाओ रंग
आई है ऋतु प्रेम की इसका अपना ढंग
रंगों में सबसे अलग लगा प्रीत का रंग
रुक रुक उठती हूक सी मन में बजे मृदंग
रंग खेलने को सखी माँगे दिन दो चार
होरी के ये चार दिन, नेह का हो व्यापार
राग द्वेष सब घुल गया, खिला प्रीत का रंग
गाल अबीर गुलाल से, पोत रहे मिल संग
गुझिया खाओ माँगकर, कांजी वड़े अनेक
चंग थाप पर झूम लो, लगा फागुनी टेक
- सरस दरबारी
१ मार्च २०१८ |