उमंगों ने
बाँधा कुछ ऐसा समाँ है
कि रंगों में डूबा ये सारा जहाँ है
जले होलिका में कपट क्लेश सारे
महज मित्रता का ही आलम यहाँ है
हुई एकजुट है, अमीरी गरीबी
नहीं फर्क का कोई नामोनिशाँ हैं
गले प्यार से मिल रहे राम-रहमत
न अब दूरी उनके दिलों-दरमियाँ है
सँवरकर रँगीले पलाशों का वन से
शहर को चला झूमता कारवाँ है
उमर से शिकायत भी होगी तो होगी
मगर आज के दिन तो हर दिल जवाँ है
गली गाँव में गेर, के हैं नज़ारे
तो शहरों को होली-मिलन पर गुमाँ है
यों फागुन ने हर मन के दागों को धोया
गुलाबी-गुलाबी, ज़मीं-आसमाँ है
विदेशों में भी ‘कल्पना’ खेल होली
प्रवासी समझते कि भारत यहाँ है
- कल्पना रामानी
१ मार्च २०१८ |