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चढ़ा जो रंग मोहन का

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी लगाने दो
मनाने दो मुझे त्यौहार और रंगत ज़माने दो

बरस के बाद आया आज ये त्यौहार होली का
मुझे भी फाग गाने का मधुर उत्सव मनाने दो

गले लगना मैं चाहूँ सांवरे नटखट कन्हैया के
चढ़ा जो रंग मोहन का उसी में डूब जाने दो

नहीं है ये गुलाबी रंग चहरे पे चढ़ा तेरे
यही तो रंगे उल्फत है इसे अपना बनाने दो

चढाओ भंग का इक घूँट मस्ती का हुआ आलम
उड़ा कर रंग होली का धरा रंगने रंगाने दो

बहार आयी है उपवन में समां रंगीन हर दिल का
नयन के तीर चलने दो मुझे घायल हो जाने दो

मुझे उम्मीद है ‘आभा’ कभी तो रंग डालोगी
जमा दो रंग होली का मुझे भी खिलखिलाने दो

- आभा सक्सेना दूनवी
१ मार्च २०१८

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