अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

फागुन तेरे रंग

फागुन तेरे रंग
हुए बदरंग
करें क्या राम दुहाई!
सबने पी ली भंग
मची हुड़दंग
करें क्या राम दुहाई!

अरसे बीते हैं
फागुनी धमाल हुए
अपने-उनके मनके
रिश्ते लाल हुए।

भीतर-भीतर जंग
खुद अपने संग
करें क्या राम दुहाई!

अबकी तो घर-बार
जल गये होली में
खूनी हाथ गुलाल
मल गये होली में।

बड़ा अजब ये ढंग
सुलगता बंग
करें क्या राम दुहाई!

रस्मों की मर्यादा
टूटा काँच हुई
अनहोनी जब
अगला सम्वत् बाँच हुई।

हिंजड़े होकर नंग
कर रहे तंग
करें क्या राम दुहाई!

- उमाप्रसाद लोधी
१५ मार्च २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter