अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

हँसी ठिठोली

हँसी ठिठोली
से भर झोली
आई है मनभावन होली

रफ्ता रफ्ता
रंग चढ़ेगा
कुछ मलाल का, कुछ गुलाल का
दिन अंगूरी
हो बहकेंगे
लहकेगा मन नये साल का
गीत प्यार के
गूँज उठेंगे
मन खेलेगा आँख मिचौली।

दहक उठेंगें
बूढ़े सेमल
पा फागुनी हवा के झोंके
बौरेंगे
आमों के बिरवे
होंगे बेर जवां बिन टोंके
चौपालों में
ढोल बजेंगे
गायेगी फगुवारी टोली।
 

- शीलेन्द्र सिंह चौहान
१५ मार्च २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter