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मस्त फगुआ आ गया

रंगों के मौसम में हर सू कैसी मची हिलोर है
मन याचक सा बन जाता
ज्यों चन्दा तके चकोर है

फव्वारे रंगों के
जब उड़ते हैं सभी दिशाओं में
रंगों की मादकता हरसू फैली दिखे फिजाओं में
रह रह साजन की यादों से भर भर आये उसका मन
उखड़ीं जाएँ साँसें दिल का
दर्द उड़े हवाओं में

परदेसी साजन से मिलने को मन अति विभोर है
मन याचक सा बन जाता ज्यों
चन्दा तके चकोर है

आया है सन्देश
पिया का घर आयेंगे जल्दी ही
साजन से मिलने को देखो फिरती वह बौरायी सी
रंगों की थाली हाथों में द्वार पर ले खड़ी हुई
फागुन के रंगों में घुल जाने की
हलचल दबी हुई

दिल व्याकुल है आँखें तरसें मन में मची हिलोर है
मन याचक सा बन जाता ज्यों
चन्दा तके चकोर है

- सरस दरबारी
१५ मार्च २०१६

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