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रंग रंग झूम रहे  

उड़ रहे गुलाल में
मिट रहे मलाल हैं

जन्मों की प्यास में
रंग श्याम घुल रहा
जीवन की आस में
रंग नया खुल रहा
फागुनी बयार में
शबनमी धमाल है

खिली सुमन पाँखुड़ी
रंग रंग झूम रहे
शरद ऋतु गई चली
मस्त भ्रमर घूम रहे
पर्वों की शान में
रोली के थाल है

लाल पीत हरा नील
मनमोहक रंग सजे
गेंदा गुलाब जूही
खिले खिले बहुत सजे
धरा खिलखिला रही
कण कण निहाल है

- ऋता शेखर 'मधु'
१५ मार्च २०१६

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