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गूँज उठी चौपाल

ढोल पर थपक-थपक की ताल
जुटी फगुओं की टोली
ये जीवन के रंग
जब तलक संग
तभी तक अपनी होली।

बैर भाव के टाँग अँगरखे
खूँटी पर गजराज
सटकर बैठे रामदीन से
गोवर्धन महराज

रंग रँगे बैताल
हाथ में लेकर रंग गुलाल
अली से करें ठिठौली।

रामरती के दरवाजे पर
अजब हो रहा स्वाँग
तीन तिलंगों ने पिल्ले को
पकड़ पिला दी भाँग

ऐसा हुआ कमाल
हँस पड़े नन्हें-नन्हें गाल
सुनी 'कों-कों' बोली।

ढूँढ रही है टूटा मनका
पीहर आई प्रीत
सदियों से पतझड़ पर भारी
यह फगुनहटी जीत

रँगो से रागों का धुरखेल
महल झोपड़ियों का गलमेल
रीति यह रहे अमोली।

- रामशंकर वर्मा
१५ मार्च २०१६

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