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रंगों भरी परात

धूप वसंती उतरी है
धरती पर छाई है
रंगों भरी परात धूप ने
फिर छलकाई है

हुए आम के हरियर पत्ते
कुछ ज्यादा चमकीले
मंजरियों ने बिखराए हैं
अपने रंग नशीले

अमराई में धूप
ज़रा बैठी अलसाई है

सतरंगी तितली मस्ती में
झूले हवा हिंडोले
चटख रंग देखे भौरों ने
अपने तजे अबोले

जंगल जंगल फिर
पलाश ने आग लगाई है

उतर किरनिया आँगन में
फागुन के रँग घोले
एक गुलाबी खुशबू
पूरे घर भर में डोले

कोने कोने धूप
हँसी, बोली, बतियाई है

- डॉ. प्रदीप शुक्ल
१५ मार्च २०१६

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