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होरी           

साँझ हुई सूरज सँग ऊषा
खेल रही होरी।

फगुआ पंछी निकल पड़े
गाने को मंगलगान
शर्मीली किरणों ने कितने
बना लिए पकवान

अंजल रंगे रंग में ऐसे ज्यों
गाँवों की गोरी।
साँझ हुई सूरज संग ऊषा
खेल रही होरी।

हवा फिरे बौराई जबसे
पी ली उसने भाँग
नशा, नाश है तब भी देखो
बढ़ गयी कितनी माँग

आँगन में बच्चे को अम्मा
सुना रही लोरी।
साँझ हुई सूरज संग ऊषा
खेल रही होरी।

- पवन प्रताप सिंह पवन
१५ मार्च २०१६

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